जैन धर्म का इतिहास
प्रिय दोस्तो हम आपको आज जैन धर्म के इतिहास से अवगत कराना चाहते है /इस अनुछेद में आप जैन धर्म के इतिहास के बारे में काफी गहराई से जान सकेंगे /और अगर आपको जैन धर्म के बारे मे और भी जानने की उत्सुकता है तो हमारे होम पेज पर जाए/
आज से करोडो वर्ष पहले अयोध्या के राजा नाभिराय थे / उनके एक पुत्र का नाम " ऋषभ नाथ "था !ये खेती करने , बर्तन आदि बनाने की कला में निपुण थे / लेकिन एक दिन अचानक राज सभा में एक सुन्दर स्त्री नृत्य कर रही थी जिसका नाम नीलांजना देवी था / अचानक ही नृत्य करते करते वह बेहोश हो गयी अर्थात वह स्वर्गवासी हो गयी यह देखकर ऋषबदेव को ज्ञान हुआ कि इस संसार में कुछ भी नहीं है कब किस प्राणी को क्या हो जाये कुछ नहीं पता तभी उनका मन विचलित हो गया और वह राज काज अपने बड़े पुत्र "भरत " को सौप कर चले गए और सन्यास व्रत को धारण किया और कठोर तप ले पस्चात उन्होंने राग आदि विकारो पर विजय प्राप्त कर ली और पूर्ण ज्ञान को प्राप्त किया इसके बाद उन्होंने समवशरण जैसे विशाल सभा में जीवो को सामान रूप से आत्म उन्नति का रास्ता बताया और फिर जैन धर्म की उत्पति हुई "इस युग के पहले धर्म उपदेशक हुए "
सिंध प्रान्त के मुहब्जोदरो में पृथ्वी के खोदने पर पांच हज़ार वर्ष पहले की बहुत चीजे निकली और उसमे कुछ "सिक्के "भी थे जिस पर ऋषबनाथ भगवन की नग्न खड़ी मूर्ति बानी थी / राजा रामचन्द्र के समय २० तीर्थंकर मुनि सुव्रत नाथ थे जो "योगविशिष्ट "ग्रन्थ पढ़ने से विदित होता है और फिर जैन धर्म का प्रचार शुरू हुआ /वेदो और पुराणो में भी जैन धर्म के प्रचारक २२ वे तीर्थंकर भगवान "नेमिनाथ" का नाम आता है और नेमिनाथ जी भगवान नारायण अर्थात कृष्ण के चचेरे भाई थे और इतिहासकारो ने मानना शुरू किया कि कृष्ण को आत्म ज्ञान सीखाने वाले "घोरअंगिरास "जो थे वह खुद भगवान नेमिनाथ थे इस प्रकार जैन धर्म एतिहासिक दृष्टि से संसार में सब से पुराना धर्म है आठवीं सदी में २३ वे तीर्थंकर पार्स्वनाथ भगवान हुए जिनका जन्म वाराणसी में हुआ भगवान पार्स्वनाथ के समय तक जैन धर्म का उतना अस्तित्व नहीं था इन्होने ही एक संप्रदाय की शुरुआत की जिसका नाम महावीर पार्स्वनाथ संप्रदाय था लेकिन ये वैदिक परम्परा के विरुद्ध था यही से ही जैन धर्म का अलग अस्तित्व बना और कुछ जैन और कुछ बुद्ध धर्म के अनुयायी बन गए १५९९ ईस्वी में अंतिम तीर्थंकर महावीर थे इन्होने ही धर्म को व्यवस्थित रूप दिया और मुनि , आर्यिका ,श्रावक ,श्राविका की श्रेणी में विभाजित किया महावीर ने ७२ वर्ष की अवस्था में ही इस धर्म को सही नाम मिला "जैन " अर्थात जिसने अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया वही जैन है /अशोक काल मे - अशोक के समय मगध में जैन धर्म के प्रचारक थे उसी समय वहा यह मतभेद हुआ की तीर्थंकरो की प्रतिमा को कपड़ो में रखे या नग्न इसमें भी संसय था कि मुनि कैसे रहेंगे इस मत पर काफी बहस हुई थी इसलिए आगे चलकर जैन धर्म के प्रचारक दो भागो में विभाजित हो गए एक दल श्वेताम्बर कहाया जो सफ़ेद वस्त्र और मुख पर पट्टी रक्ते थे दूसरे दिगम्बर जो बिना कपड़ो अर्थात नग्न रहते थे /
श्वेताम्बर और दिगम्बर में अंतर
दिगम्बर आचरण को पालन करना थोड़ा कठिन होता है जबकि श्वेताम्बर कुछ सरल है श्वेताम्बर मुनि सफ़ेद कपड़ो में रहते है और दिगम्बर मुनि बिना कपड़ो के यह नियम केवल मुनि अर्थात साधुओ को पालन करने की अनुमति हैजैन धर्म यह मानता है कि स्त्री पर्याय में रहकर हम केवल ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकते केवलज्ञान प्राप्त करने के लिए स्त्री पर्याय को छेद कर पुरुष पर्याय में आना पड़ेगा
शाखाए -दिगम्बरो की दो शाखाए होती है मूर्तिपूजक और तेरापंथी और शेताम्बरो की भी दो शाखाए होती है मूर्तिपूजक वह मूर्ति को सजा कर वस्त्र पहनकर पूजा करते हैऔर दूसरे स्थानक वासी जो मूर्ति को नहीं पूजते उनके लिए णमोकरमंत्र ही सबसे बड़ा मंत्र है वह मानते है कि जो प्रतिमा पाषाण की है जो अपनी रक्षा नहीं कर सकती तो हमारी क्या करेगी इसलिए वह णमोकरमंत्र को ही सर्वोच्च मानते है अर्थात शास्त्र पर विस्वाश करते है उनके लिए वही मोक्ष का रास्ता है हम कह सकते है चाहे ही जैन दो भागो में बटा हो पर इसका रास्ता एक ही है इस संसार में अपने कर्मो की निर्जरा करके मोक्ष को प्राप्त करना है /
"अहिंसा परमो धर्मा "
जैन धरोहर को ठेस - मुगलकाल में हिन्दू ,जैन ,बुद्ध धर्म पर मुसलमानो ने काफी आक्रमण किया उनकी धरोहरो को नष्ट करने की कोशिश की अर्थात ७० फीसदी मंदिरो को नष्ट कर दिया इस दर से धीरे धीरे जैनियो का हौसला टूटने लगा लेकिन फिर भी पुरे समाज ने एक जुट होकर अपने धर्म को बचाए रखने की पूर्णतया कोशिश जारी राखी इसका साक्षात उदहारण है दिल्ली का "लाल मंदिर "
जो लाल किले के सामने है और उतना ही पुराना है जितना की लाल किला /मुगलो ने उस मंदिर को नष्ट करने के लिए उस पर बम ,तोप ,आदि छुड़वाय पर उस मंदिर को कोई ठेस नहीं पहुंची वह आज भी सुंदरता का केंद्र है और उसकी मूर्ति चमत्कारिक है अंत में मुगलो ने भी हार मान कर उसके प्रभाव को माना इसी उदहारण में हमारे बहुत से तीर्थ है जैसे -सम्मेदशिखरजी आदि बहुत से तीर्थ है
अरे रुकिए अभी तो बहुत कुछ बाकि है महावीर स्वामी के समय मुनिराज हुए जिनका नाम "गौतम गणधर "था उन्होंने ही महावीर स्वामी को ज्ञान दिया और फिर उनकी वाणी खीरी तभी से ही हमारा जैन धर्म प्रचलित हुआ इसी प्रकार मांगतुंगाचार्य ,कुंद्कुंदाचार्य जैसे इतिहास के महान व्यक्तिव है
फिर हम बात करते है हमारे तीर्थो की जो कितने अलौकिक और सुन्दर है जैसे - अजंता और एलोरा की गुफाए उनकी कलाकृति कितनी सुन्दर है जो आज भी जैन इतिहास में चार चाँद लगाती है /
और हम बात करते है कि इस काल में जो प्रतिमा खुदाई में निकलती है वह कहा से आई उन्हें तो किसी ने दबाया नहीं !इस संसार के निर्माण से पहले भी जैन धर्म का अस्तित्व था और मंदिर भी थे जब पृथ्वी घुमी तो सब नष्ट हो गया जिसमे की हमारा धर्म लुप्त हो गया पर ख़त्म नहीं हुआ फिर इस दुनिया का निर्माण हुआ और खुदाई में जब जैन प्रतिमाए निकली इस प्रमाण पर हम कह सकते है की हमारा धर्म कितना प्राचीन धर्म है और एतिहासिक भी !
इसलिए हम कह सकते है की "जैन धर्म "एक सच्चा और भाव प्रधान धर्म है इसका इतिहास आलौकिक है और यह धर्म हर कल में खरी कसौटी पर उतरा है और आपने अस्तिव को बचाये रखा और हमारी ये गुजारिश है की आप भी अपने धर्म की रक्षा हर पल करेंगे /
"एक दो तीन चार जैन धर्म की जय जयकार "
"जैन हमारा मान है जैन हमारा अभिमान है जैन ही सब धर्मो में महान है "
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"सादर जय जिनेंद्र "
जैन धर्म को सबसे अधिक हानि बोध काल मे हुई।बहुत सी मूर्तियों को खंडित किया गया।मुगल साम्राज्य 1526 मे स्थापित हुआ था ।तब तक जैन मत महाभारत काल से सिकुडने लगा हूण चालुकय बोदध आदि शासन काल मे जैन धरम को हानि पहुची मुगलो से पूर्व मोहम्मद बिन कासिम के समय से ही जैन मत के मानने वालो मे भारी कमी आ चुकी धी ।आधिकाश मूर्तियाँ ओर मंदिर नष्ट हो चूके थे ।
ReplyDeleteJai dharm....shayad vedic dharm ka samkaalin raha hoga..jo sindhu ghaati pashupati nath ji ..swastic k chinh mile hain ho sakta hai rishabh dev ji k hon...gautam budhha ji k dharm me jain dharm ki mool vaaten hi hai..unhone kaya kast,tap ka marg
Deleteko chhod diya...dhyan mansik brahmcharya..aur nitantrit mansahar ki anumati bhi di...mugalo k pahle jo lutere pravitti k aakramankaari the jo ki ya to dharmandh the ya apni senaa ko control kane ke liye dharm ka use kiye..jai khilji..ne nuksaan pahunchaya...par mere mat se murti tatha chamtakaro k prati aasthaa ne ise nuksaan pahunchaya...hab tak srishti hsi praani karmbandh me bante rahenge..aur kuchh usase mukti ka prayas karte hi rahenge koi kisi dharm ko nadt nahi kar saktaaa..mai hindu hun..par puraano ko lekar..hindu tatha jain...tatha mahayaan baudhho k muryi pujan ko lekar..meri shradhaa nahi hai....jain dhar k prati aadar isliye hai..isme paanch anuvrat jo bataye hain wo saare dharmo ka saar hai..tahi 10 commanments hai..jisme visrltar karke torah .talmud bible kuraan bane...happy jorney
Vex prakadh soni chhattisgarh
Jo murti swayam ki rakshaa nahi kar sakti use to k koi bhi aapki aadtha ko nuksaan pahunchaa sakta hai....panch mahavrat...to sate dharmo ka saar hai veero ka marg hai..jain dharm ko haani nahi pahunchi balki ...manav jaati ka kaal k adheen oatan huaa hai..isi loye ye avsarpini kaal hai..apne vrat ka palan kijiye...dusro ko nirvazn ka marg dilhaane dharm ka punar utthaxn karne ka bhaar ...jinke pass hai wo salsham hain ..aap apne marg pe chaliye....ved soni...jai hind ..jai hindu jain baudh muslim christan sikh ekta...ye pakistani bhikhaari yaha post kar rahe wo jaan le mai hindu hun ahinsa ka vrat mera nahi hai mer to saare devta hathiyaar chalate hain..is liye madarse apni...
DeleteJain dharm purana yani bhagwan ram krisan se bhi hajaro sal purana h.
ReplyDeleteVikram mehta ji sahi kaha aap ne jain dharm sabse purana dharm hai hum ne bachpan me school ke kitab me yahi pada hai baad me RSS aur BJP ne itihaas ke Saath ched chad kia hai.
DeletePakistaani madarse me history bhi padhane lage kya be...dekh.mera post uper...
DeleteJain dharm purana yani bhagwan ram krisan se bhi hajaro sal purana h.
ReplyDeleteThank you for sharing this wonderful knowledge with us.
ReplyDeleteHistory of jain dhram
गौतम गणधर तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य थे , जबकि ऊपर लिखा गया कि गौतम गणधर महावीर के गुरु थे ये सर्वथा गलत है ।
ReplyDeleteSahi kaha aapne aur ye pura details Nahi hai aadura hai
DeleteBhai Tuje Jain itihas Pura Pata Nahi hai to kyu likh ke mazak Bana raha hai
ReplyDeleteMuje pata hein, hain dharma ek kalpnik dharma hein, mithyatva belief bohot milenge. Paar, jo jain samaj usmein sein kuch jagarurat hein sach ko lekar. Baki, blind faith rakhakar chalte hein
DeleteMAHAVIR Bhagwan Kab mugal kal me huhe 1599 me mugal India pe raj kar rahe the Bhai logo ko gyan dene se Pahle khud to gyan barabar leke aa
ReplyDeleteKya bol raha hai kya Likh raha hai Koi bhi jagah se itihas aur bhugol MIL hi Nahi raha hai tera