जैन धर्म क्या है
प्रिये दोस्तों ,आपका स्वागत है हमारे पेज पे आज हम आपको धर्म के बारे में बतायेगे धर्म क्या है और हम इसे कैसे अपना सकते है और इसके मुख्ये सिद्धांत/ धर्म आत्मा का अंनत दिव्य प्रकाश है वह बहार में नहीं ,अंदर में है परन्तु संसार में धर्म के नाम पर धर्म में अधर्म की मिलावट भी होती रही है ,जिस से सच्चे धर्म को पहचानना प्रायः कठिन हो गया है इसलिए यह जरुरी है कि हम धर्म के असली स्वरूप को समझे और फिर उस पर निष्ठापूर्वक आचरण करे /
धर्म का क्या अर्थ है?
जो दुःख से ,दुर्गति से ,पापाचार से , पतन से बचाकर आत्मा को ऊँचा उठाने वाला है ,धारण करने वाला है वह धर्म है /सच्चा धर्म क्या है ?
जिससे किसी को दुःख न पहुंचे ' - ऐसा जो भी अच्छा विचार और अच्छा आचार है,वही सच्चा धर्म है/ क्या जैन धर्म सच्चा धर्म है ?हाँ, वह अच्छे विचार और अच्छे आचार वाला धर्म है ,इसलिए सच्चा धर्म है /संसार के दुखो से छुड़ा कर असली सुख में पहुचने वाले को धर्म कहते है /धर्म वास्तु के स्वभाव को कहते है जब मनुष्य अपने स्वभाव को जान कर अपने स्वभाव में स्थिऱ रहता है तब उसे मुक्ति मिलती है मुक्ति के लिए आत्मा को निर्मल होना चाहिए और जब तक मोह, माया ,लोभ ,का उपराम नहीं होता तब तक आत्मा शुद्ध नहीं होती जो प्राणी दर्शन मोह और चरित्र मोह को नष्ट कर विषयो से विरक्त हो कर मन को स्थिऱ कर आत्मा स्वरूप को जनता है तब सच्चा सुख मिलता है धर्म की उत्पत्ति सत्य से होती है अतः हिंसा ,झूठ चोरी ,कुशील ,निंदा ,ईर्ष्या छलकपट तथा कुकर्मो को छोड़ना चाहिए तब ही आत्मा का पूर्ण विकास होता है उर वाही सच्चा धर्म है /जैन धर्म का क्या अर्थ है ?जिन भगवन का कहा हुआ धर्म जैन धर्म है / जिन भगवन कौन ?जो राग द्वेष को जीत कर पूर्ण पवित्र और निर्मल आत्मा हो गए है वे जिन भगवन है श्री पार्शवनाथ ,महावीर आदि /
जैन धर्म निर्ग्रन्थ धर्म भी है
जैन धर्म के क्या दूसरे भी नाम है ?हाँ , अहिंसा धर्म ,स्याद्वाद धर्म ,अर्हंत धर्म ,निर्ग्रन्थ धर्म / जैन धर्म में अहिंसा का बड़ा महत्व है ,इसलिए वह अहिंसा प्रधान धर्म है ,स्याद्वाद का अर्थ पक्षपात रहित्तता है ,इसलिए पक्षपात रहित होकर तठस्थ भाव से सत्य का उपासक होने से जैन धर्म स्याद्वाद धर्म है /'अर्हंत' जिन भगवन को कहते है इसलिए उनका बताया हुआ धर्म अर्हंत धर्म है / निर्ग्रन्थ का अर्थ परिग्रहरहित होता है जैन धर्म परिग्रह का अर्थात धन संपत्ति के संग्रह सम्बन्धी मोह का त्याग बतलाता है इसलिए वह निर्ग्रन्थ धर्म है /जैन धर्म अनादि है
जैनधर्म कब से चला ?जैन धर्म नया नहीं है अनादि है /अहिंसा और दया ही जैन धर्म है संसार में जिस प्रकार दुःख अनादि है उसी प्रकार जीवो को दुःख से बचाने वाली अहिंसा और दया भी अनादि है इसलिए अनादि अहिंसा और दया का विशुद्ध मार्ग ही जैन धर्म कहलाता है /'जिन भगवन 'का कहा हुआ धर्म ही तो जैन धर्म है ,इसलिए अनादि कैसे हुआ ?जिन भगवन किसी खास समय विशेष में कोई एक व्यक्ति विशेष नहीं हुए है पूर्वकाल में राग द्वेष को जितने वाले जिन भगवन अनंत हो गए है और भविष्य में भी अनंत होते रहेंगे अतः जय धर्म अनादि काल से चला आता है समय समय पर होने वाले जिन भगवन उसे अधिकाधिक प्रकाशित करते है देश कल की परिस्थिति के अनुसार उसकी नवीन पद्धति से पुनरिस्थापना करते है जिन भगवन जैन धर्म को चलाने वाले नहीं वरन उसका समय समय पर सुधार करने वाले उद्धारक है /जैन कौन हो सकता है
जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत
जैन धर्म का सिद्धांत बहुत ही गंभीर है अतः उसका पूरा परिचय तो जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथो के अधयन से ही हो सकता है /हाँ ,संक्षेप में जैन धर्म के मोटे मोटे सिद्धांत इस प्रकार है -१ जगत अनादि और अनंत है /
२ आत्मा अजर अमर है /
३ आत्मा अनंत है /
४ आत्मा ही परमात्मा है /
५ आत्मा चैतन्य है /
६ कर्म जड़ है /
७ आत्मा की अशुद्ध स्थिति ही संसार है /
८ आत्मा की पूर्ण शुद्ध अवस्था ही मोक्ष है /
९ आत्मा की अशुभ प्रवत्ति पाप है और शुभ पुण्य है /
१० विशुद्ध वीतराग भाव ही श्रेष्ठ धर्म है /
११ धर्म साधना में जाति का भेद नहीं है /
१२ अहिंसा ही उत्कृष्ट मानव धर्म है /
इसलिए ही हम कहते है '' अहिंसा परमो धर्मा '', ''जियो और जीने दो '' लोभ पाप का बाप बखाना '' '' शांति और आत्म नियंत्रण ही अहिंसा है ''
जैन धर्म की विशेषता
१ प्रत्येक जीव की स्वतंत्र सत्ता है जीव जैसा कर्म करता है वैसा फल पैट है /२ जीव ,पुद्गल ,धर्म ,अधर्म ,आकश और काल ये ६ द्रव्य है /
३ जीव ,अजीव आश्रव ,बंध,सम्बर,निर्जरा ,मोक्ष ये ७ तथ्य है /
४ सम्यक दर्शन ,सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र ही मोक्ष का मार्ग है /
५ हिंसा, झूठ ,चोरी, कुशील और परिग्रह ये ५ पाप है /
६ क्रोध ,मान ,माया ,लोभ ये ४ कषाये है इनका परित्याग करो /
७ उत्तम क्षमा ,मार्जव ,आर्जव ,सत्य ,शौच, संयम ,तप,त्याग ,अकिंचन ,ब्रम्चर्य ये धर्म की १० सीढ़ी है /
८ जैन धर्म स्वयं विज्ञानं है /
कहा भी है -
''मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकम महात्मनाम् ''
मन ,वचन और काय से जो एकरूप होते है वही महात्मा होते है इसी उक्ति को चरितार्थ करता है आपका महान जीवन /
''उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै ''
कार्यो की सिद्धि पुरुषार्थ से हि होती है सिर्फ सोचने से नहीं /
आपको भी यह जैन धर्म की जानकारी इस पुरुषार्थ के लिए प्रेरित करेगी इसी विस्वाश के साथ हम आपको और भी जानकारी प्रस्तुत करते रहेंगे और आप भी इसी लगन से पढ़ते रहिये और जानकारी प्राप्त करते रहिये /
''सादर जय जिनेद्र ''
Nice!
ReplyDeletejain dharm
Nice!
ReplyDeleteThanks for sharing precious knowledge with us. Visit here also..
Jaiswal Jain
जैन धर्म की जयजयकार
ReplyDeleteजैनम जयति शाशनम
ReplyDeleteअहिंसा परमोधर्म की जय हो
🙏🙏
अच्छा प्रयास
ReplyDeleteThe English word "hatred" appears in the English translation of your webpage text. You should change the wording so this word does not get translated as "hatred" because it can be confusing or misleading for your English readers.
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